इंसान की जिंदगी में समय का बहुत महत्व होता है. समय के हिसाब से चलने वाले ही आगे की जिंदगी में कामयाब बनते हैं. समय की बात करें, तो बचपन से ही बच्चे को घड़ी देखना सिखाया जाता है. माना जाता है कि अगर बच्चे को समय देखना आएगा तभी वो समय की अहमियत समझ पाएगा. समय के बारे में जानने के बाद ही वो अपना हर काम टाइम से खत्म कर पाने में सफल हो पाएगा. घड़ी देखते हुए बच्चे को ये सिखाया जाता है कि एक कब बजते है और दो कब? लेकिन इस दौरान ये भी सिखाया जाता है कि घड़ी के कांटे 12:30 पर आते ही साढ़े 12 बजते हैं और 1:30 पर आते ही डेढ़.
समय को सिखने के दौरान हम वही सीखते हैं जो सिखाया जाता है. लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि आखिर 1:30 को डेढ़ क्यों कहते हैं? आखिर 2:30 को ढाई क्यों कहते हैं. इसे साढ़े एक या साढ़े दो क्यों नहीं कहते? बच्चा साढ़े दस, साढ़े नौ और साढ़े आठ सीखता है. लेकिन साढ़े एक और साढ़े दो उसे नहीं सिखाया जाता. क्या आपने कभी ये जानने की कोशिश की है कि आखिर ऐसा क्यों होता है? कई बार बच्चे जब साढ़े एक बोल देते हैं तब उसे समझाया जाता है कि वो गलत है और इसे डेढ़ कहते हैं ना कि साढ़े एक.
क्या है डेढ़ और ढाई?
भारत में गणित को उसके मूल अंक में पढ़ाया जाता है. पहले के समय में लोगों को कई तरह के फ्रैक्शनल शब्द पढ़ाए जाते थे. जहां आज के समय में लोगों को एक दो या तीन के पहाड़े सीखते हैं, वहीं पहले के समय के लोगों को चौथाई, सवा, पौने, डेढ़ और ढाई के पहाड़े भी सिखाए जाते थे. भारत के इन फ्रैक्शनल नंबर्स का इस्तेमाल ज्योतिष विद्या में भी किया जाता था. लेकिन समय के साथ आम लोगों के साथ इनका इस्तेमाल कम होता चला गया. अब सिर्फ ढाई और डेढ़ का ही चलन रह गया है.
सिर्फ घड़ी में रह गया अस्तित्व
समय के साथ इन फ्रैक्शनल नंबर्स का चलन सिर्फ और सिर्फ घड़ियों में रह गया है. जहां पहले 1/4 को पाव, 1/2 को आधा, 3/4 को पौन और 3/4 को सवा कहा जाता था. लेकिन अब सिर्फ डेढ़ और ढाई का इस्तेमाल किया जाता है. वो भी समय बताने के लिए घड़ी देखने के बाद. हालांकि सवा और पौने का भी इस्तेमाल घड़ी में किया जाता है. जैसे चार बजकर पंद्रह मिनट की जगह इसे सवा चार भी कहा जा सकता है. या चार बजने में पंद्रह मिनट को पौने चार कहा जा सकता है.