क्यों रहे सिद्ध संत के संपर्क में ?

संसारी जीव को संत के समीप रहने की आवश्यकता क्यों होती है ? अर्थात संसारी व्यक्ति के लिए संतों के चरणों के नजदीक रहना क्यों आवश्यक है ? क्या संत के बगैर संसारी जीव का कल्याण नहीं है ? क्या संतों के आशीर्वाद के बगैर भक्त भगवान से नहीं मिल सकते ? भक्ति मार्ग के पथिकों के मन में ऐसे ही बहुत प्रकार के प्रश्न घूमते होते हैं, इन प्रश्नों का भक्त सम्यक रूप से समाधान चाहता है, अर्थात कन्फ्यूजन का कंपलीट सॉल्यूशन, बहुत साधारण शब्दों में क्योंकि शास्त्रों की गूढ़ भाषा आज के भक्त को सहज समझ में नहीं आती है, इसके समाधान के लिए संत कृपा से आप लोगों की सेवार्थ तुच्छ प्रयास आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूं, यद्यपि गोस्वामी जी ने राम जी के नवधा भक्ति के उपदेश के माध्यम से स्पष्ट कर दिया है कि भक्त को भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए सबसे पहले संतों की संगति आवश्यक है, प्रथम भक्ति संतन कर संगा….
हम कलयुगी जीवों को भक्ति मार्ग की बातों को समझने के लिए उदाहरण की परम आवश्यकता होती है, इसलिए आप लोगों के लिए सांप नेवले से संबंधित उदाहरण प्रस्तुत करने जा रहा हूं, आप लोगों ने कम से कम सोशल मीडिया के माध्यम से सांप नेवले की लड़ाई अवश्य देखी होगी, इन दोनों के बीच भयंकर शत्रुता है, देखते ही एक दूसरे को मार डालने के लिए उद्यत हो जाते हैं और अधिकांश परिणाम में नेवला सांप को मार देता है, यद्यपि सांप के पास नेवले से ज्यादा जहर की शक्ति होती है, परंतु फिर भी नेवला ही लड़ाई जीत जाता है, क्यों ?
क्योंकि नेवला सांप से लड़ाई करते समय एक ऐसी जगह को चुनता है, जहां पर सांप के जहर को मारने की बूटी होती है, जब जब नेवले पर सांप के जहर का प्रभाव बढ़ने लगता है तब तब वह उसी बूटी से शरीर के जहर को नष्ट कर लेता है, और इस प्रकार से वह सांप को मार डालने में कामयाब हो जाता है, यदि कभी गलती से नेवला ऐसी जगह पर सांप से लड़ाई कर बैठता है जहां पर वह बूटी ना हो तो स्वयं सर्प के जहर की वजह से मारा जाता है, इस सांप नेवले के प्रसंग से आप अपनी संकाओं का सहज में समाधान समझ सकते हैं,
विद्वानों ने इस संसार को भी सर्प के सामन बताया है
यह संसार जीव को पल-पल दंश मारता है, अर्थात अनेकों प्रकार से कष्ट देता रहता है, अथवा शरीर की भक्ति शक्ति को क्षीण करके मृत्यु के ग्रास में ले जाने के लिए तत्पर रहता है, ऐसी स्थिति में संत लोग उस नेवले की बूटी के समान होते हैं, जो संसार के जहर को उतारने में सक्षम होती है, संसार का जहर से तात्पर्य ,जीव के जीवन में संसार व्यवहार में अपने परायों द्वारा दिए गए नाना प्रकार के त्राश कष्ट मानसिक आघात जो व्यक्ति को व्यथित कर डालते हैं मानसिक-अवसाद, कुंठा आदि जैसे भयानक मनोरोगों में डाल देते हैं ऐसी स्थिति में संत जन अपने दर्शन के प्रभाव से संसार का यथार्थ दिखाकर उसे रोग से मुक्त करके जीवन के आनंद का बोध कराकर जीवन को मंगलमय बनाते हैं,इसलिए अपना कल्याण चाहने वाले जीवों को सदैव संत महापुरुषों के आसपास रहना चाहिए, दर्शन करते रहना चाहिए, समय-समय पर इनके दर्शन वचन से अपनी भक्ति रूपी प्रतिरोधी शक्ति को बढ़ाते रहना चाहिए, इसी में मानव जीव का कल्याण है, जीव का जीवन सार्थक है

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HARSH GOGI
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